2016 में जारी वर्ल्ड एटलस ऑफ आर्टिफिशियल नाइट स्काई ब्राइटनेस नाम की एक स्टडी बताती है कि दुनिया की 80 परसेंट शहरी आबादी स्काईग्लो पॉल्यूशन के प्रभाव में है. यह प्रभाव ऐसा होता है कि लोग कुदरती रोशनी और बनावटी रोशनी में फर्क महसूस नहीं कर पाते.
पहले और अब में क्या अतंर है? आप कहेंगे एक नहीं बल्कि कई अंतर हैं. हो सकता है अंतरों की एक पूरी लिस्ट गिना दें. हो सकता है ये भी कह दें कि पहले की रात बिना बिजली के कटती थी. बल्ब के बदले लालटेन या ढिबरी की रोशनी में कटती थी. अब तो सिर्फ रोशनी और उजाला है. आप ये भी कह सकते हैं कि पहले बिजली नहीं थी, तो भी छत पर सो जाया करते थे. रात को आसमान में तारे गिना करते थे. तारे दूर से साफ-साफ नजर आते थे. यहां तक कि आकाश गंगा या मिल्की वे को हम बचपन में पहचान लिया करते थे. लेकिन आज? आज वो बात नहीं है और नई जनरेशन के बच्चों से कहा जाए कि आसमान में रात में झांक कर मिल्की वे दिखाओ, तो शायद वे कंफ्यूज होंगे. हो सकता है दिखा भी न पाएं. तो ये है पहले और आज का सबसे बड़ा अंतर.
अब सवाल है कि जनरेशन में इतना बड़ा अंतर क्यों आया कि अब के बच्चे मिल्की वे को नहीं पहचान पाते. इसका एक जवाब है रात में पूरी दुनिया में चमकते असंख्य बल्ब, ट्यूब, सीफीएल और क्या-क्या. ये इंसानी लाइटें हैं जिसने प्राकृतिक लाइट को टीमटीम बना दिया है. हम तारे देखना भी चाहते हैं लेकिन विवश हैं क्योंकि आंखों को आदत बनावटी रोशनी देखने की आदत हो गई है. इन लाइटों ने यूनिवर्स का पूरा हिसाब बदल दिया है. इंसानी लाइटें पर्यावरण, हमारी सुरक्षा, ऊर्जा की जरूरतों और सेहत को पूरी तरह प्रभावित कर दिया है.
लाइट पॉल्यूशन क्या है
पानी, हवा और जल प्रदूषण के बारे में आप बचपन से पढ़ते आ रहे हैं. आज रोशनी से होने वाले प्रदूषण के बारे में जानिए. सर्वप्रथम तो यह जानना होगा कि लाइट प्रदूषण होता क्या है. साधारण शब्दों में कहें तो बनावटी या मानव निर्मित रोशनी का हद से अधिक इस्तेमाल ही लाइट पॉल्यूशन है. इस प्रदूषण ने इंसानी जिंदगी को कौन कहे, जानवरों और अति सूक्ष्म जीवों की जिंदगी भी खतरे में डाल दिया है. लाइट पॉल्यूशन के 4 अलग-अलग प्रकार बताए गए हैं-
ग्लेयर- रोशनी की अत्यधिक चमक जिससे आंखें चौंधिया जाएं, थोड़ी सी लाइट मद्धम होने पर अंधेरे सा दिखने लगे.
स्काईग्लो– घनी बसावट वाले इलाकों में रात के अंधेरे में भी आसमान का चमकना
लाइट ट्रेसपास- उन जगहों पर भी लाइट का पड़ना जहां उसकी जररूत नहीं
क्लटर- किसी एक स्थान पर एक साथ कई चमकदार लाइटों का लगाना
ऊपर बताए ये 4 कंपोनेंट लाइट पॉल्यूशन की श्रेणी में आते हैं. तकनीकी भाषा में कहें तो लाइट पॉल्यूशन औद्योगिक सभ्यता का साइड इफेक्ट है. इस साइड इफेक्ट के सोर्स की बात करें तो इनमें एक्सटीरियर और इंटीरियर लाइटिंग, एडवर्टाइजिंग, कॉमर्शियल प्रॉपर्टिज, ऑफिस, फैक्ट्री, स्ट्रीटलाइट और रातभर जगमगाते स्पोर्ट्स स्टेडियम शामिल हैं. ये लाइटें इतनी चमकदार होती हैं कि इंसानों से लेकर जानवरों तक की जिंदगी को मुश्किल बनाती हैं. ऐसी लाइटें ज्यादातर स्थिति में बिना काम की होती हैं. अगर इतनी चमकदार लाइटें न भी लगाई जाएं तो कम चल सकता है. ऐसी लाइटें भारी संसाधन के खर्च के बाद आसमान में विलीन होती रहती हैं. अगर तकनीक का इस्तेमाल कर सिर्फ उतने ही स्थान पर लाइट रोशन की जाए जितने स्थान पर रोशनी की जरूरत है तो यह प्रदूषण बहुत हद तक कम हो सकता है.
सेहत पर असर
2016 में जारी वर्ल्ड एटलस ऑफ आर्टिफिशियल नाइट स्काई ब्राइटनेस नाम की एक स्टडी बताती है कि दुनिया की 80 परसेंट शहरी आबादी स्काईग्लो पॉल्यूशन के प्रभाव में है. यह प्रभाव ऐसा होता है कि लोग कुदरती रोशनी और बनावटी रोशनी में फर्क महसूस नहीं कर पाते. अमेरिका और यूरोप के 99 परसेंट लोग नेचुरल लाइट और आर्टिफिशियर लाइट में फर्क नहीं कर पाते. उन्हें पता नहीं होता कि बल्ब की रोशनी और सूर्य की रोशनी में कैसा अंतर होता है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि लोगों 24 घंटे बनावटी रोशनी में रहते हैं. वे अंधेरे में कभी रहे नहीं. रोशनी भी मिली तो बल्ब और ट्यूब की. ऐसे में कुदरती रोशनी पहचानने में दिक्कत पेश आती है.
पर्यावरण का पूरा हिसाब गड़बड़
आप इस प्रदूषण के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो गूगल अर्थ पर ‘ग्लोब एट नाइट इंटरेक्टिव लाइट पॉल्यूशन मैप’ का डाटा देख सकते हैं. इस धरती का अस्तित्व 3 अरब साल का बताया जाता है जिसमें रोशनी और अंधेरे का एक तालमेल है. ये दोनों मिलकर ही धरती को संभालते रहे हैं. इसमें सूर्य, चंद्रमा और तारों की रोशनी शामिल है. अब बनावटी लाइट ने रात और अंधेरे का कॉनसेप्ट खत्म कर दिया है. इससे कुदरती रात और दिन का पैटर्न पूरी तरह से तहस-नहस हो गया है. इससे पर्यावरण का पूरा हिसाब गड़बड़ा गया है. अत्यधिक रोशनी के चलते रात को नींद नहीं आती या देर से आती है. सुबह घरों में कुदरती रोशनी का प्रवेश नहीं होने से समय से नींद नहीं खुलती. इसका बड़ा असर हमारी सेहत पर देखा जा रहा है.
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