हेलो दोस्त आप का हमारे वेबसाइट पर स्वागत करते है आज के पोस्ट में आप सब लोग जानेगे bacic accounting terms hindi लेखांकन ( अकाउंट ) के महत्वपूर्ण शब्द जो की अकाउंट या टैली करने वाले स्टूडेंट को जानना आवश्यक होता है तो दोस्तों आप का जड़ वक्ता न लेते हुए सुरु करते है आज का पोस्ट bacic accounting terms hindi लेखांकन ( अकाउंट ) के महत्वपूर्ण शब्द इस का विवरण इस प्रकार है
नो. | Contents Details | |
1 | व्यावसायिक लेन देन | business transaction |
2 | खाता | account |
3 | पूंजी | capital |
4 | प्राप्तिया | receipts |
5 6 | खर्चे हानि | expenditure loss |
1.व्यावसायिक लेन देन business treansaction
व्यापर में मुद्र माल या सेवा के पारस्परिक आदान प्रदान को व्यावसायिक सौदे या लेनदेन business treansaction कहलाती है व्यवसाय में जब भी कोई लेन-देन होते हैं तो इससे व्यवसाय की सम्पत्तियों, दायित्वों व पूँजी में परिवर्तन हो जाता है। लेन-देन दो प्रकार के होते हैं—नकद एवं उधार। लेनदेन या सौदा के समय तत्काल नकद भुगतान किया जाए तो इसे नकद सौदा (Cash Transaction) कहते हैं। जब भुगतान भविष्य में किया जाता है तो इसे उधार सौदा (Credit transaction) कहते हैं।
2.खाता account
किसी व्यक्ति विशेष, वस्तु, सम्पत्ति, लाभ या आय, हानि या व्यय आदि से सम्बन्धित व्यवहारों का संक्षिप्त तथा व्यवस्थित रिकार्ड हिसाब-किताब की पुस्तकों में जिस शीर्षक में रखा जाता है, उसे खाता account कहते हैं।
3.पूंजी capital
व्यापार का स्वामी अपने व्यापार को प्रारम्भ करने के लिए जो धन नकद या माल के रूप में लगाता है, उसे पूँजी कहते हैं। अन्य शब्दों में धन का वह भाग जिसे अतिरिक्त आय अर्जन के लिए प्रयुक्त किया जाता है, पूँजी कहलाता है। पूँजी खाता (Capital A/c) व्यापार के स्वामी का निजी खाता (Personal A/c) कहलाता है।
व्यवसाय ( Business)
लाभार्जन या आय अर्जन के उद्देश्य से किया गया प्रत्येक वैध कार्य व्यवसाय कहलाता है। व्यवसाय के अन्तर्गत व्यापार (Trade) जिसके अन्तर्गत वस्तुओं का उत्पादन या क्रय-विक्रय द्वारा लाभ की प्राप्ति, पेशा (Profession) विशिष्ट व्यक्तिगत योग्यता के माध्यम से विशिष्ट कार्य सम्पादन द्वारा आय अर्जन तथा सेवाएँ जिनमें व्यापार या पेशा के कार्य सम्पादन हेतु सहायक सेवाओं (जैसे- बीमा, बैंकिंग, यातायात आदि) के कार्य सम्पादन द्वारा आय अर्जन सम्मिलित है।
व्यापार का स्वामी (Proprietor)
व्यापार में पूँजी लगाने वाला व्यक्ति तथा व्यापार के हानि या लाभ का अधिकारी व्यक्ति व्यापार का स्वामी कहलात है। जिस व्यापार का एक व्यक्ति स्वामी होता है उसको एकाकी व्यापारी (Sole trader) तथा दो या दो से अधिक व्यक्तियों यात व्यापार को साझेदारी (Partnership) कहते हैं।
देनदार या अधमर्ण (Debtors). ऐसे व्यक्ति या संस्था जिन्हें माल, सेवा या नकद राशि उधार दी गई है अर्थात् जिनसे रकम लेना बकाया है, यह तब तक देनदार कहलाता है जब तक सम्पूर्ण राशि चुका नहीं देता है। इन्हें अधमर्ण इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इनकी स्थिति व्यापार में अधम (नीची) होती है।
प्रमाणक (Voucher)
व्यावसायिक लेनदेन या सौंदे को प्रमाणित करने वाले प्रपत्र या लिखित प्रमाण पत्र प्रमाणक कहलाता है। प्रत्येक सौदे या लेन-देन का एक प्रमाणक होता है तथा लेखा-पुस्तकों में इसी प्रमाणक के आधार पर प्रविष्टि की जाती है। उधार क्रय-विक्रय हेतु बीजक, रुपयों के लेन-देन के लिए रसीदों, बैंकों में जमा हेतु स्लिप व बैंक मे प्रमाणक कहलाते हैं।
हानि (Loss)
आर्थिक लेन-देन या आकस्मिक घटनाओं के कारण होने वाला घाटा व्यापारिक हानि कहलाता है। व्यापार में म घाटा या कमी हानि होती है।
हानि के प्रकार
(i) पूँजीगत हानि (Capital Loss)-किसी स्थायी सम्पत्ति की बिक्री से उदित हानि को पूँजीगत हानि कहते (ii) आगम या आयगत हानि (Revenue Loss) - व्यापार के सामान्य संचालन या माल के क्रय-विक्रय वाली हानि आगम या आयगत हानि कहलाती है। (iii) सामान्य हानि (Normal Loss)-प्राकृतिक कारणों या माल के स्वाभाविक गुणों के कारण होने वाल
सामान्य हानि कहलाती है। जैसे- पेट्रोल का उड़ना, कोयले का सूखना, सीमेण्ट का झड़ना आदि।
(iv) असामान्य हानि (Abnormal Loss)- असामान्य हानियों से आशय ऐसी हानियों से है जो आकस्मिक घ किन्हीं विशिष्ट या असामान्य कारणों से उत्पन्न होती है जिसकी पूर्व में कल्पना नहीं की जा सकती थी। जैसे-आग दुर्घटना तथा बाढ़ से होने वाली हानि।
क्रय (Purchases)
व्यापार के लिए माल खरीदने को क्रय कहते हैं। नकदी में खरीदे माल को नकद क्रय (Cash purchases) अ समय बाद चुकाने के शर्त पर खरीदने को उधार (Credit purchases) कहते हैं किन्तु व्यापार के लिए पूँजीगत खरीदना क्रय में शामिल नहीं होता है।
क्रय वापसी (Purchases Returns or Returns Outwards)
माल के क्रय के पश्चात् जब उसे किन्हीं कारणवश वापस किया जाता है तो यह क्रय वापसी या बाह्य वापसी क्रय प्रत्याय कहलाता है।
विक्रय (Sales )
माल को मुद्रा के प्रतिफल में बेचने को विक्रय कहते हैं। जब नकद मूल्य लेकर विक्रय किया जाता है तो उसे विक्रय (Cash Sales) और बेचे गए माल का मूल्य सौदे की तिथि से कुछ समय पश्चात् भविष्य में प्राप्त हो तो इसे विक्रय (Credit Sales) कहते हैं।
विक्रय वापसी या आन्तरिक वापसी (Sales Returns or Return Inward)
जब बेचे हुए माल को क्रेता किन्हीं कारणवश वापस करता है तो यह विक्रय वापसी या आन्तरिक वापसी कहला
माल (Goods)
लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से जिन वस्तुओं का क्रय-विक्रय किया जाता है, उन वस्तुओं को माल कहते हैं उसी रूप में बेचने के उद्देश्य से अथवा बेचे जाने वाले वस्तु के निर्माण के लिए क्रय की गई वस्तुएँ दोनों शामिल हो उदाहरणार्थ, कपड़ा मिल द्वारा क्रय किया गया कपास, चावल मिल द्वारा क्रय किया गया धान, फर्नीचर बनाने के लिए गई लकड़ी आदि माल के उदाहरण है।
स्कन्ध या रहतिया (Stock)
(A). पूँजीगत खर्च (Capital Expenditure ) -- स्थायी संपत्तियों को क्रय करने से संपत्ति के कार्यक्षमता में या उनको उत्पादन शक्ति बढ़ाने, व्यापार के विकास तथा विस्तार एवं पूँजी एकत्रित करने के लिये किया गया व्यय व्यय कहलाता है। इन खर्चों का लाभ दीर्घकाल तक प्राप्त होता है। जैसे- मशीनरी, प्लांट, फर्नीचर आदि के क्रय पर भवन निर्माण पर खर्च आदि।
(B). आगमगत खर्च (Revenue Expenditure)-व्यापार हेतु माल खरीदने, माल बनाने व्यापार का सं करने तथा स्थायी सम्पत्तियों के कार्यक्षमता को बनाए रखने के लिए किए गए समस्त व्यय आगमगत व्यय कहलाते है खर्चों का पूर्ण लाभ चालू वित्तीय वर्ष में प्राप्त हो जाता है। जैसे-वेतन, मजदूरी, किराया, बीमा, विज्ञापन आदि। 2-
(C)अस्थगित आगमगत व्यय (Deferred Revenue Expenditure)- व्यवसाय में किये गये ऐसे व्यय जिनकी उपयोगिता व्यवसाय में अनेक वर्षों तक प्राप्त की जाती है, तो इन व्ययों को ' अस्थगित आयगत व्यय' कहा है, इनकी कुछ राशि प्रथम वर्ष के लाभ-हानि खाते में तथा शेष राशि चिट्ठे में सम्पत्ति पक्ष की ओर दिखायी जाती है।वर्ष फिर व्यय की कुछ राशि उस वर्ष के लाभ-हानि खाते तथा शेष राशि चिट्ठे में सम्पत्ति पक्ष की ओर दिखायी जाती है व्ययों को लाभ-हानि खाते एवं चिट्ठे में दिखाने का क्रम उस समय तक चलता रहता है जब तक कि ये व्यय पूर्ण अपलिखित नहीं हो जाते हैं।
यदि अन्य बातें समान रहे, तो निम्नांकित व्यय अस्थगित आयगत व्ययों के उदाहरण हैं-अंशों के निर्गमन पर ऋणपत्रों के निर्गमन पर व्यय, अभिगोपकों को दिया जाने वाला कमीशन, विज्ञापन पर बड़ी रकम का व्यय आदि।
व्यय (Expenses)
शामिल किया जाता है
1,00,000 लिखे जायेंगे। माल अथवा सेवा के उत्पादन करने एवं विक्रय करने हेतु उत्पन्न हुई लागतें व्यय कहलाती हैं। अन्य शब्दों में अ को अर्जन करने के उद्देश्य से वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए की गयी लागतें व्यय कहलाती हैं। व्ययों में निम्नलिखित
(i) बेचे गए माल अथवा सेवा की लागत
(ii) किराया, कमीशन, वेतन, मजदूरी आदि पर व्यय
(iii) ह्रास आदि।
आय (Income)
आगम तथा व्यय के बीच की राशि के अन्तर को आय कहा जाता है अर्थात् कुल आगम राशि में से कुल व्यय की घटा देने से प्राप्त अन्तर की राशि आय है। आय (Income) = आगम (Revenue)-व्यय ( Expenditure )
आय की राशि लाभ-हानि खाते के क्रेडिट पक्ष में लिखी जाती है। आय का सम्बन्ध चालू वित्तीय वर्ष से रहता
लाभ (Profit)
व्यावसायिक क्रियाओं के कारण जब आगम व्ययों की तुलना में अधिक हो तो अन्तर की राशि लाभ कहलाती है। प्रकार का लाभ किसी व्यवसाय में एक विशेष अवधि में किये गये व्यावसायिक लेन-देनों के परिणामों को सूचित करता लाभ से स्वामियों के व्यवसाय में विनियोग में वृद्धि होती है।
(A). लाभ (Gain) - व्यवसाय से सम्बन्धित किसी घटना या लेन-देन के परिणामस्वरूप प्राप्त होने वाले मौ लाभ से है। जैसे—किसी सम्पत्ति के मूल्य में वृद्धि, किसी स्थायी सम्पत्ति के विक्रय से लाभ, न्यायालय में चल रहे कि मुकदमे में जीत आदि। जैसे-मशीन जिसकी लागत ₹5,00,000 है और ₹6,00,000 में बेच दिया जाए तो मशीन के बे से ₹1,00,000 का लाभ प्राप्त हुआ। Gain (लाभ) कहलाएगा।
(A). सम्पत्ति को निम्नानुसार विभाजित किया जा सकता है
(1) स्थायी सम्पत्ति (Fixed Assets)- व्यापार में स्थायी रूप से या दीर्घकाल तक प्रयोग की जाने वाली सम्पत्तियाँ स्थायी सम्पत्तियाँ कहलाती है। व्यापार के संचालन में स्थायी सम्पत्ति का प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है जैसे-भूमि, भवन, मशीन, फर्नीचर आदि।
(ii) चालू या अस्थायी सम्पत्ति (Current Asset or Floating Assets)- व्यवसाय में अस्थायी या अल्पकालिक प्रयोग में आने वाली सम्पत्तियाँ चालू सम्पत्तियाँ कहलाती है। ये सम्पत्तियों परिवर्तित होती रहती हैं, जैसे- कच्चा माल, रोकड़,
बैंक आदि। (iii) अमूर्त सम्पत्ति (Intangible Assets)-वे सम्पत्तियाँ जिन्हें ना तो देखा जा सकता है और न ही हुआ जा सकता
है. केवल महसूस किया जा सकता है, अमूर्त सम्पत्तियाँ कहलाती हैं। जैसे-व्यापार की ख्याति पेटेण्ट आदि। (iv) दृश्य या मूर्त सम्पत्ति (Tangible Assets)- ऐसी सम्पत्तियाँ जिन्हें देखा व स्पर्श किया जा सकता है उन्हें दृश्य या मूर्त सम्पत्तियाँ कहते हैं। जैसे-भूमि, भवन, फर्नीचर आदि। (v) क्षयशील सम्पत्ति (Wasting Assets) - ऐसी सम्पत्तियाँ जो व्यवसाय में प्रयुक्त होकर समाप्त हो जाती है,
क्षयशील सम्पत्तियाँ कहलाती है। जैसे-कोयले की खान, तेल के कुएँ आदि। (vi) तरल सम्पत्ति (Liquid Assets)- ऐसी सम्पत्तियाँ जिन्हें शीघ्र या अल्पकाल में रोकड़ में परिवर्तित किया जा सकता है, तरल सम्पत्तियाँ कहलाती हैं। जैसे-हस्तस्थ रोकड़, बैंक में रोकड़, प्राप्य बिल देनदार आदि।
(vii) कृत्रिम या अवास्तविक सम्पत्तियाँ (Fictitious Assets)- ऐसी सम्पत्तियाँ जिनका कोई भौतिक स्वरूप (Physical form) नहीं होता है किन्तु कानूनी या तकनीकी (Legal or Technical) आधार पर सम्पत्तियाँ मानी जाती है उन्हें कृत्रिम सम्पत्ति कहते हैं। इनका कोई वास्तविक मूल्य नहीं होता है इसलिए इन्हें लेखा पुस्तकों में से भविष्य में धीरे-धीरे अपलिखित (written off) कर दिया जाता है।
प्राप्तियाँ (Receipts)
माल (वस्तुएँ), सम्पत्तियाँ या सेवाओं के विक्रय से प्राप्त हुई या क्रेता पर बाकी रकम प्राप्तियाँ कहलाती है। प्राप्तियाँ
पूँजीगत प्राप्तियाँ या आगमगत प्राप्तियाँ हो सकती हैं 2-7 (A). पूँजीगत प्राप्ति (Capital Receipts)- पूँजीगत प्राप्ति से आशय ऐसी प्राप्तियों से है जो व्यापार की स्थायी सम्पत्तियों एवं पूँजी के सम्बन्ध में प्राप्त होती है। सामान्यतया ऐसी प्राप्तियाँ व्यापार में पूँजी के रूप में या स्थायी सम्पत्तियों को
बेचने से प्राप्त होती हैं। पूँजीगत प्राप्तियाँ प्राय: निम्नलिखित रूप में हो सकती हैं (i) व्यापार के स्वामियों द्वारा लायी गयी पूँजी
(ii) तृतीय पक्षकारों से ऋण के रूप में ली गयी धनराशि
(iii) व्यापार की स्थायी सम्पत्तियों के विक्रय से प्राप्त राशि।
(iv) कम्पनी के अंशपत्रों या ऋणपत्रों के निर्गमन से प्राप्त होने वाली धनराशि (v) स्थायी सम्पत्ति की क्षति पर बीमा कम्पनी से प्राप्त क्षतिपूर्ति की राशि
(vi) कम्पनी के अंशपत्रों तथा ऋणपत्रों के निर्गमन पर प्राप्त प्रीमियम की राशि 2-7 (B). आगमगत प्राप्तियाँ (Revenue Receipts) - आगमगत प्राप्तियों से आशय उन प्राप्तियों से है जो व्यापार
के सामान्य संचालन के दौरान प्राप्त किया जाता है। ऐसी प्राप्तियाँ व्यापार में चल सम्पत्तियों पर या आयगत लाभ से प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए माल के विक्रय से प्राप्त राशि, किराया, ब्याज, बट्टा, विनियोग पर प्राप्त व्याज आदि से प्राप्त धनराशि 2-8. खर्चे ( Expenditure)
किसी सम्पत्ति माल या सेवा के क्रय के बदले में दी गयी रोकड़ या सम्पत्ति हस्तान्तरण या किसी दायित्व का उत्पन्न होना खर्च कहलाता है। संक्षेप में व्यवसाय में लाभ प्राप्त करने के लिए किया गया भुगतान खर्च कहलाता है। खर्चे तीन प्रकार के होते हैं- पूँजीगत खर्च, आगमगत खर्च एवं अस्थगित आगमगत व्यय ।
आहरण (Drawing) व्यापार का स्वामी जब निजी उपयोग के लिए व्यापार से नकद या माल (वस्तुएँ) लेता है तो यह आहरण कहलाता है।आहरण से व्यवसाय की पूँजी घट जाती है।
दायित्व या देनदारी (Liabilities) दायित्व का आशय व्यापार के स्वामी के कोषों के अलावा व्यापार के उन ऋणों व देनदारियों से हैं, जो अन्य व्यक्तियों या संस्थाओं को चुकाने हैं, जैसे-देय विपत्र, बैंक ऋण, अधिविकर्ष, ऋण पत्र, अदत्त व्यय आदि । 2.5 (A). दायित्व का वर्गीकरण (Classification of Liabilities) दायित्वों का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया जा सकता हैं
बट्टा, छूट या अपहार (Discount)
बट्टा के प्रकार
व्यापारी द्वारा अपने विभिन्न ग्राहकों को प्राप्य धन में कमी करने के रूप में जो रियायत या छूट प्रदान की जाती है, उ बट्टा, छूट, अपहार या कटौती कहते हैं।
बट्टा दो प्रकार का होता है
1.व्यापारिक बट्टा
2.नकद बट्टा
(i) व्यापारिक बट्टा (Trade Discount)- विक्रेता द्वारा अपने ग्राहक को माल बेचते समय माल के अंकित मूल् में दी जाने वाली रियायत या छूट ही व्यापारिक बट्टा कहलाता है। यह छूट ग्राहकों को अधिक से अधिक माल खरीदने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से दी जाती है। इस बट्टे को बीजक में ही कम कर दिया जाता है इसका लेखा पुस्तकों में नहीं किया जाता है।
(ii) नकद बट्टा (Cash Discount)- व्यापारी द्वारा क्रय किये माल के भुगतान के समय भुगतान में दिया जाने वाला छूट नकद बट्टा कहलाता है। अन्य शब्दों में ग्राहक द्वारा नियत तिथि के पूर्व मूल्य का भुगतान करने पर जो छूट दी जाती है उसे नकद छूट कहते है।
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